Thursday, September 10, 2009

देने के बाद क्या मिलता है इस संसार में

देने के बाद क्या मिलता है इस संसार में
हम तो लुट ही चुके हैं इस आसार में !

होश आया
भी तो कब आया , जब
मेरा सब कुछ बिक गया बाज़ार में !

छीना (छीनना पड़ा) जब हमने हक़ अपना,दुसरो का भी
बज उठी तालियाँ और नारे लगे
जय-जयकार में !

आगे , बहुत तेजी से बढ़ते जा रहे थे हम , और
दुनिया भी भूल रही थी सब कुछ उसी रफ्तार में !

यूँ ही आगे , आगे ही बढे चले जा रहे थे हम
कि, रुक गए ,रोक लिया ! किसी की दर्द भरी पुकार ने !

और जब फिर से एहसास करने लगे दुसरों
का दर्द
तो भटकने लगे बनके भिखारी उसी बाज़ार में !!


--------------------------------------------------"सर्वेश"

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