Thursday, August 20, 2009

जब से तुझसे आँख मेरी लड़ गई रे

जब से तुझसे आँख मेरी लड़ गई रे
बिना पिए जैसे मुझे चढ़ गई रे


छुप कर तुझको देखने लगा हूँ
आँखें अपनी सेकने लगा हूँ
दिल की अंगूठी में तू जड़ गई रे।


रात भर मैं जगने लगा हूँ
ठंडी आहें भरने लगा हूँ
निंदिया मेरी आंखों से उड़ गई।


कुछ भी मुझको भाता नहीं है
समझ में कुछ भी आता नहीं है
तेरी चाहत में हालत बिगड़ गई रे।

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