लिख के सबका हिसाब रखता है
दिल में ग़म की किताब रखता है
कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या
खुद को खानाखराब रखता है
आग आँखों में और मुट्ठी में
वो सदा इन्किलाब रखता है
जो है देखें जमाने की सीरत
खुद को वो कामयाब रखता है
उसकी नाजुक अदा के क्या कहने
मुटठी में माहताब रखता है
बाट खुशियों की जोहता है तू
दिल में क्यों फिर अजाब रखता है
आइने से न कर लड़ाई ,कि वो
कब किसी का हिजाब रखता है
उससे क्या गुफ़्तगू करोगे तुम
वो सभी का जवाब रखता है
श्याम’ चितचोर, है नचनिया है
कैसे-कैसे खिताब रखता है
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